विस्थापित कश्मीरी पंडित रुबन जी सप्रू पिछले 10 सालों से कश्मीर घाटी में नौकरी कर रह रहे हैं लेकिन आज भी वो अपने घर से दूर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सरकार की ओर से चलाए जा रहे ट्रांज़िट कैंप में रह रहे हैं.
रुबन ऐसे अकेले विस्थापित कश्मीरी पंडित नहीं हैं जो पिछले 10 सालों से कश्मीर में रहते हुए भी अपने घर से दूर विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं.
इस समय पूरे कश्मीर में करीब चार हज़ार विस्थापित कश्मीरी अलग-अलग ट्रांज़िट कैम्पों में रह रहे हैं और लगातार सरकार के सामने जम्मू स्थित 'घर वापसी' की मांग को दोहराते रहते हैं.
पिछले 30 सालों में उन्होंने तिनका-तिनका जोड़ कर अपना नया आशियाना जम्मू में या जम्मू से बाहर देश के अन्य राज्यों में बना लिया है अब फिर से यह सब छोड़ कर कश्मीर लौटना उनके लिए संभव नहीं है.
उनका मानना है 1990 में कश्मीर घाटी से विस्थापन के बाद 2010 में उन्हें एक बार फिर अपना घर परिवार छोड़ सरकार की ओर से दी गई नौकरियाँ करने के लिए कश्मीर घाटी का रुख़ करना पड़ा था.